नारी शिक्षा
कहा गया है जंहा स्त्रियों की पूजा होती है वंहा देवता निवास करते हैं । प्राचीन काल से ही नारी को ‘गृह देवी’ या ‘गृह लक्ष्मी’ कहा जाता है ।
प्राचीन समय में नारी शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता था । परन्तु मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति दयनीय हो गयी । उसका जीवन घर की चारदीवारी तक सिमित हो गया । नारी को परदे में रहने के लिए विवश किया गया । स्त्री-पुरुष जीवन-रूपी रथ के दो पहिये हैं, इसलिए पुरुष के साथ साथ स्त्री का भी शिक्षित होना जरुरी है ।
यदि माता सुशिक्षित होगी तो उसकी संतान भी सुशील और शिक्षित होगी । शिक्षित गृहणी पति के कार्यों में हाथ बंटा सकती है, परिवार को सुचारु रूप से चला सकती है । स्त्री-शिक्षा प्रसार होने से नारी आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनेगी। अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति सचेत होगी । आदर्श गृहणी परिवार का आभूषण और समाज का गौरव होती है ।
स्त्री के लिए किताबी शिक्षा के साथ साथ नैतिक शिक्षा भी बहुत जरुरी है । स्त्री गृह कार्य में कुशल होने के साथ साथ वह समाजसेवा में भी योगदान दे सके । नारी का योगदान समाज में सबसे ज्यादा होता है । बच्चों के लालन-पालन, शिक्षा से लेकर नौकरी तक नारी हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे है । अतः नारी को कभी कम नहीं आंकना चाहिए और उसका सदा सम्मान करना चाहिए ।
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